जो-तो पैश्याच्या मागे लागला..
न्यायनिवाडा काय कामाचा
जिथे जन्म सिध्द करायला देवालाही कोर्टाचा आधार लागला
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स्वर भिजला ओठी थिजला...
अर्थ सारा विसरुन गेला..
दुःख प्याला निमुटपणे अन...
गालांवरीच सुकुन गेला
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पुन्हा भेटलो आपण आज त्याच वळणावर..
पण ....आजही काहीच बोललो नाही..
बोलणार तरी कसे होतो?..
तु त्या सरणावर मी ह्या सरणावर
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चेह-यावरचं ते खोटं अवसान
तुझ्यासमोर काही टिकलं नाही..
तुला समोर पाहील्यावर
तो खोटा मुखवटा लावुन वावरणं
कधीच मला जमलं नाही...
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सारं काही माफ होतं
तुझ्या त्या स्मितासाठी..
स्वतःला विसरुन जायला होतो तयार मी
तुझ्या चेह-यावर हास्य बघण्यासाठी
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बरेच दिवस झाले कोणाशीच
मनापासुन बोललो नाही..
गुंता माझ्या विचारांचा झालेला
बाकी कोणालाही सुटणार नाही
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ओंकार
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